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पाँय परूँ कर जोरी, लँगर मोसे खेलो न होरी।।
रंग पर्यो मोरी चुनरी बिगर गई, आन परी दृग रोरी।
गाल-गुलाल मलो मति माधव, बैन सुनो यह मोरी,
लला न करो बरजोरी।।
नाहक आजु मोहि पर डार्यो, पिचकारिन रंग घोरी।।
सास ननद को मोइ डर लागत,आई हों मैं तोरी खोरी,
लला उनकी अब चोरी।।
खेलत संग हमें डर लागत, अबहिं उमर मोरी थोरी।
ढीठ भये तुम एक न मानत, मोतियन की लर तोरी,
छैल बहियाँ झकझोरी।।
प्रीत की रीत नहीं कछु जानत, ब्रज की नई हम गोरी।
‘‘लालमणी’’ ललिता मन मोहन, बोले सुधारस बोरी।
हँसे मग में मुख मोरी।।