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रघुवर जी सौं कहियो मोरी।।
सुनो हनुमंत अंजनी नंदन, कहियो संदेसो निहोरी।
सीस निवाय चरण गहि लीजो, कीजो विनती मोरी।
राम जू सों दोउ कर जोरी।।
भृगुपति कीरति सुनी है जिनकी, तिनको धनुष जिन तोरी।
ते भुज बल अब कितहि पुरावत, रावन दुष्ट हनोरी
कहत यह जनक किशोरी।।
दिन नहिं चैन रैन नहिं निदिया, खान पान बिसरौरी।
बन उपबन में जाय परी हूँ, तेरो ही ध्यान धरो री।
राम राम मुख से कहोरी।।
कोटिक दूर लंक गढ़ तुमसें, जिन से सृष्टि रचौरी।
हा रघुनाथ कौशल्यानंदन शीघ्रहि कष्ट हरोरी।
भक्तन प्रतिपाल करो री।।
कहें हनुमान धीर धर माता लंका करूं जिम होरी।
रावण कुंभकरण सब मरिहैं, मेघहिनाद हनौरी
देउं तैंतीस बंध छोरी।।
तुलसी दास प्रभु तुम्हरे मिलन को, अवध आस रही थोरी।
प्राण दान दीजै रघुनंदन, गावत कीरति तोरी।
प्रीत अब करहु बहोरी।।