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खेलें सन्त सभी मिल होरी।।
शंकर ताल मृदंग बजावत, ग्वाल ढफन की जोरी।
नारद कमला बीन बजावै, बैकुण्ठ में फाग मच्यो री,
मुखिया जगदीश बनोंरी।।
ध्रुव प्रहलाद अम्बरीष सुदामा, ऊधो अर्जुन विदुर सजोरी।
गोपी ग्वाल विभीषण भीषण, इन सब रंग भरोरी,
त्रिलोचन पर छिरकोरी।।
नाम देवजी और कबीरा, कुबरी ने ठाठ ठठोरी।
रंका बंका नरसी मेहता, सूर ने ध्यान धरोरी,
खेलें हरि के संग होरी।।