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आई बसन्त बहार पिया रंग चुनरि हमारी।।
बहुत दिनन सों चुनरि मोरी मैली, देख हँसे नर नारी।
चेरी तुम्हारी हों सब कोई जानत, सोच समझ बनवारी,
लाज मेरी कि तिहारी।।
कोऊ सास कोऊ ननद सों झगड़त, मोकां तौ आस तिहारी।
अब की बार चुनरि मेरी रंग दे, रख ले लाज हमारी,
पिया तोरी बलिहारी।।
कोऊ गावें कोऊ नाचें, मैं याही सोच में ठाड़ी।
”रामचन्द्र“ के लालन के गुन, मेरी सुरतिया बिसारी,
कहा तकसीर हमारी।।