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वरजौ नहिं मानत बार-बार।।
जब मैं जात सखी दधि बेचन, भागत कांकर मार-मार।।
लै लकुटी मटुकी महि पटकी, घूँघट देखत टार-टार।।
हरवा तोर्यो गरवा लगायो, कंचुकि कीन्हीं तार-तार।।
कपटी कुटिल कठोर श्याम घन, देखत छिपि तरू डार-डार।।
”हरिविलास“ बृजराज दुलारो, तनु कारो गुण कार-कार।।