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आये सब क्षीर सागर तीर विधि महेश,
सुरेश धरनी अमर गण की भीर।।
विपत्ति वश सुर कर करत विनती बहत लोचन नीर,
दीन बन्धु सनाथ कीजै हरो वसुधा पीर।।
सुन विनय भई गगन वानी, अवनी मनुधरू धीर,
”हरिबिलास“ हुलास करिहों, धारि मनुज शरीर।।