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आज मच्यो बृज फागु री, चलु विलम्ब न कीजै।।
नन्द किशोर दरश हित कारण, बाढ़ो जिय अनुराग री।।
लै सखी अबीर, गुलाल, कुमकुमा, भरि केशर रंग गागरी।।
भरि भुज भेट लेहु फागुन मिस, मेंट लेउ उर आगरी।।
जिहि ब्रहादिक ध्यान न पावत, ”किंकर“ तुम बड़ भाग री।।