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राधे जू आजु बरनौ बसन्त।।
मिलत मदन-विनोद विहरत, नागरी-नवकंत।।
मिलत सनमुख पटल पाटल, भरत मानहि जुही।
बेलि प्रथम-समाज-कारन, मेदिनी कंचन गुही।।
केतकी कुच-कलस-कंचन, गरे कंचुकि कसी।
मालती मद-चलत लोचन, निरखि मुख मृदु हँसी।।
विरह-ब्याकुल मेदिनी कुल, भई बदन-विकास।
पवन-परिमल सहचरी पिक, गान हृदय हुलास।।
उत सखा चंपक चतुर अति, कुंद मनु तन-माल।
मधुप मनि-माला मनोहर, ‘‘सूर’’ श्री गोपाल।।