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प्रिय देखौ बन-छबि निहारि, बारबार यह कहति नारि।।
नव-पल्लव बहु सुमन रंग, द्रुम-बेली तनु भयौ अनंग।।
भँवरा भँवरी भ्रमर संग, जमुन करति नाना तरंग।।
त्रिविध पवन मन हरख दैन, सदा बहति नहिं रहत चैन।।
‘सूरज’ प्रभु करि तुरत गैन, चले नारि-मन सुखद नैन।।