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बिहारी जिन मारो घूँघट पिचकारी, मोहि जान दै घर बलिहारी।।
सुनत नगर के लोग लुगाई, गावो गैल में गारी।।
बृजनारी वैसेई घर घर नित, चरचहिं प्रीति तुम्हारी।।
‘‘रामप्रताप’’ करत ठनगन नये, नहिं मानत मनुहारी।।