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खेलत श्याम श्यामा फाग, बृज होरी की धूम मची।।
इत हैं गुपाल सखा सब संग लिये, उत बृषभान लली।।
वे छिरकत रंग सुरंग प्रिया दिसि, उन मुँख रोरी मली।।
लोचन लाहु लेहु लखि ‘‘किंकर’’, दोऊ भाँति भली।।