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जल तन शीत सतावे, निठुर तोहि लाज न आवै।।
दीनानाथ दीन हितकारी, जाको यश जग गावै।
सो लै चीर कहा बनि तनि के, पल्लव जाय लुकावै,
लाज तोहि नैक न आवै।।
जो अद्वैत अखंड अगोचर, अग जग ब्रह्म कहावै।
सूने भवन जाय ग्वालन संग, ‘‘किंकर’’ माखन खावै,
हमें यह अचरज आवै।।