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मनमथ के रंग भई मूरत श्याम की, देखत दुःख मिटे मेरे जिय कौ।।
गुरुजन पुरजन कहा करेगौ, यह तो औसर है होरी कौ।।
ननद जिठानी की कान न करिहों, जाय गहों कर सां कर पिय कौ।।
सवै श्रृंगार बनाय संवारो, और देउ केसरि को टीकौ।।
कृष्ण जीवन ‘‘लछीराम’’के प्यारे, जाय मिलोगे तन मन हिय को।।