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लाल फिर होरी खेलन आओ।।
फेरि वही लीला को अनुभव, हमको प्रगट दिखाओ।।
फेरि संग लै सखा अनेकन, राग धमारहिं गाओ।।
फेरि वही बंसी धुनि उचरौ, फिर वा ढपहिं बजाओ।।
फेरि वहीं कुंज वहै बन बेली, फिर ब्रजबास बसाओ।।
”हरीचन्द“ अब सही जात नहिं, खबर पाइ उठि धाओ।।