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अंजनी सुत प्रभु मन भायौ।।
लाल लंगोट बंधौ अति सुन्दर, माथे सिन्दूर लगायौ।
एक कर गदा दूजे द्रोणागिरि, अवधपुरी पै आयौ,
भरत ने बाण चलायौ।।
लागत बाण गिरौ धरणी पै, राम नाम मुख गायौ।
इतनी सुनि कै उठे हैं भरत जी, धुनि-धुनि शीश धुनायौ,
राम के काज न आयौ।।
कौन कौ पुत्र कौन कौ पायक, कौन पुरी सै तू आयौ।
कौन रजा की करत चाकरी, किन के काजै आयौ,
भरत ऐसे बतरायौ।।
अंजनि पुत्र राम कौ पायक, लंक पुरी सें आयौ।
सुग्रीव रजा की करत चाकरी, लक्ष्मण काज पठायौ,
संजीवनी लेने कौं आयौ।।
आउ बीर तू बैठि बान पै, बाण बिमान बनायौ।
लै द्रोणगिरि चलौ है गगन में, राम के पास सिधायौ,
शोक में हर्ष समायौ।।