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साँवरा कहीं रम रहा माई।।
कारे ही कारे जितने जगत में, सब ही हैं दुखदाई।
कारिन की परतीत न कीजै, सरबस लेंहि छुड़ाई
बुरिन सों होत बुराई ।।
मथुरा की भामिनि हैं बड़ी कामिनि, वश में किये यदुराई।
तृन सम प्रीति पाछिली तोरी, ता पै करत बड़ाई,
कहौ जा में कौन बुराई।।
ऊधौ जी तुम जाउ द्वारिका, हरि जी कों देउ समुझाई।
कृष्ण भई सो भई सो भई सो, वेगि खबरि लीजौ आई,
फाग सब बीतौ जाई।।