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फाग खेलन बरसाने आए हैं, नटवर नन्द किशोर।।
घेरि सखी सब गली रंगीली,छाय रही जहँ छटा छबीली,
अब ढोल मृदंग बजाए हैं, नटवर नन्द किशोर।।
हिलि मिलि कैं सब सखियाँ आई,उमड़ि घटा अम्बर में छाई,
तब सखियन चोट चलाए है, नटवर नन्द किशोर।।
लै रहे चोट ग्वाल ढालनि पै,केसरि कींच मची गलियन में,
तब रंग अबीर उड़ाए हैं, नटवर नन्द किशोर।।
भई अबीर की घोर अँधियारी, दीखति ना कोई नर अरु नारी,
तब राधे सैन चलाए हैं, नटवर नन्द किशोर।।