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मानों रे तुम्हारी ना मैं बतियाँ,
तुम तौ जाउ भवन उनहीं के, रहे सारी रतियाँ।।
अटपटी पाग लटपटे भूषन,
डगमगात शरमात, खुमारी भरी अँखियाँ।।
कपट कुचाल समझ कें तुम्हरी,
करिहों न मन परतीति, रीति की ये बतियाँ।।
होरी के दिनन पिया सौंतिनि के घर,
आवत हौ नित जात,जरावत छतियाँ।।