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काहे गुलाल सैयाँ हम पै डारौ, रंग सें चटक अँग रँग ही हमारौ।।
आवौ पिया मुख देखौ सेज पै, मुख जैसें चन्द्र जोवन जैसें तारौ।।
सिसकि सिसकि मेरौ मन बस करि लीनौ, अब क्यों न अँचरा उघारौ।।
‘कृष्णानंद’ लागि उर मेरे, आनन्द केलि मदन बिस्तारौ।।