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ऊँचौ है गोकुल गाँव, जहाँ हरि खेलत होरी।।
चलौं सखि देखन जायँ, पिया अपने की होरी।।
बाजत ताल मृदंग और, किन्नर की जोरी।
गावत दै दै गारि परस्पर, भामिनि गोरी।।
बूका सुरँग अबीर उड़ावत, भरि-भरि झोरी।
इत गोपिन के झुंड, उतै हरि हलधर जोरी।।
नवल छबीले लाल, छबीली सूरत भोरी।
राधा चलीं मुस्काय, श्याम सों खेलन होरी।।
खेलत भयौ जो आनन्द, देखौ वृषभानु किशोरी।
‘सूर’ सखी उर लाय, हँसत भुज गहि झकझोरी।।