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श्याम मोरी चूनरि कुसुम रँगी रे।।
ऐसौ ढीठ बरजोरी श्याम मोरी, चूनरि कुसुम रँगी रे।।
गोरस गागरि फोरि डारी आली, दधि की कींच मची रे।
भरि पिचकारी छाँड़त मो पर, केसर रंग रची रे।।
मलत अबीर कपोलन मारत, कुमकुम रंग भरी रे।
छूटी अलकें नील झरत रँग, मानहुँ मेघ झरी रे।।
नैन चकोर रूप रस प्यासे, चितवन वदन-ससी रे।
मृदु मुसकानि ‘राज’ वह चितवनि, छबि उर दृगन बसी रे।।