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होरी खेलि आये हौ तुम, होरी खेलि आये हौ।।
नख-सिख अंग भींजि रहृौ रँग में, रँग ही में सरसाये हौ।।
मन-मोहन ब्रजराज साँवरे, लागत अधिक सुहाये हौ।।
काजर चिन्ह गुलाल गाल पै, मुख मंडल करि आये हौ।।
‘पुरुषोत्तम’ प्यारे वा गोरी सों, कैसें आमन पाये हौ।।