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हरि नहिं आये बसन्त लग्यौ री।।
शरद विहाय शिशिर )तु बीती, कामिनि काम जग्यौ री।।
कासौं कहौ और काहि सुनाऊँ, कोऊ अब जतन करौ री।।
‘काशी’ प्रमोद अमोद जगत में, एहि विधि भाव भरौ री।।