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विचित्र वृतान्त बनायौ, आनन्द मंगल छायौ।।
पृथ्वी भूमि रचाय सुघर, आकाश कौ मंडप छायौ।
रवि शशि सुंदर दिये लटकाये, तारन बिच चमकायौ।।
पर्वत खम्भ गाढ़े शुभ गढ़िकें, ब्रह्मन माल पहनायौ।
धरि अमोल मंडिन पृथ्वी बिच, सिन्धु कलश भरवायौ।।
रैन दिवस बिच बिच कर गूंथी, बंधनवार बंधायौ।
लाय मेघ सुन्दर किन छायौ, बिजली लंप जगायौ।।
फरस बिछाय ग्यान की चादर, मसनद भक्ति सजायौ।
लोभ मोह दोऊ जोरि मशालें, माया कों नाच नचायौ।।
‘दया’ लगत अस राम जनक के, आज विवाहन आयौ।
सखि री देखि राम विवाहू, बोलि कहा मन भायौ।।