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प्रभु तेरी महिमा कौन बखानी, मूक भई सब बानी।।
वेद पुरान भागवत गीता, छबि बरनत सकुचानी।
मानुस तन की शक्ति कहा है, जो तुमकों पहिचानी।।
पूरन ज्ञानी भेद न जानी, सोलह कला वरदानी।
हरि गति कों यदि काहू जानी, गोपिन माँहि समानी।।
भीष्मक ब्याह रचौ कन्या कौ, शिशुपालहिं सुखमानी।
रूकमिन पाती भेजी द्वारिका, मन अपने हुलसानी।।
आरत बानी पढ़ि पाती की, हरि ने गवन प्रमानी।
पहुँचत ही बगिया में उतरे, सब राजन भय मानी।।
जरासंध शिशुपाल के देखत, कूच करौ सुख दानी।
आइ द्वारका ब्याह रचायौ, रूकमिन भई पटरानी।।