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नाथ मेरा क्या बिगड़ेगा, जायगी लाज तुम्हारी।।
तुम तो दीनानाथ कहावत, मैं अति दीन दुखारी।
जैसें जल बिनु मीन मरति है, सोई गति भई है हमारी।।
भूमि-विहीन पांडु सुत डोलें, धरणि धरम-सुत हारी।
रही न पैज प्रबल पारथ की, भीम गदा महि डारी।।
सूर-समूह सभी मिलि बैठे, बड़े बड़े ब्रत धारी।
भीषम, करण, द्रोण, दुःशासन, जिन मेरी अपत्ति विचारी।।
मो पति पाँच पाँच के तुम पति, सो पति कहाँ बिसारी।
‘सूर’ स्याम पीछें पछितैहौ, जब मोहि देखौ उघारी।।