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कैसे मैं होरी खेलौ पिया संग, दुविधा रारि मचाइ रही रे।।
पाँच पचीस ने फागु रच्यौ है, ममता रंग बनाय रही रे।
नाचत लाज सरम के आगें, संशय भाव बताइ रही रे।।
करि सिंगार कुमति बनी बैठी, भरम के घुंघरू बजाइ रही रे।
ये तीनों ताल मृदंग बजावैं, मैं मैं रागिनी छाइ रही रे।।
कपट कटोरा मधु विष भरि कें, तृष्णा मन को छकाइ रही रे।
जाही जीव कों बस करि अपने, हंस को काग बनाइ रही रे।।