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क्या रे गुमान करै जिन्दगानी का।।
जिन साहिब ने जन्म दिया है, रूप दिया अति नीका।
रूप पाय अभिमान न कीजै, रंग रूप सब फीका,
बिना दरसन उस पी का।।
हिन्दू होय ब्रत पहिचाने, पूजै पेड़ तुलसी का।
पाप पाखंड दूर कर दिल से, यही धर्म का टीका,
यही तप है तपसी का।।
मुसलमान ईमान संभारे, रक्खै ध्यान नबी का।
रोजा नमाज बंदगी गुजारै, वो ही मुसलमान टीका,
पढ़ै कलमा उस नबी का।।
‘असरफ अली’ तुम भरि भरि दीजो, प्याला प्रेम-प्रीति का।
पीकर प्याला मगन होइ बैठे, ध्यान धरै रे वहीं का,
जो मालिक हम सबही का।।