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आई गवनवा की सारी, उमरि अजहूँ मोरी बारी।।
साज सजाय पिया लै आये, और कहरिया चारी।
बम्हना बेदर्दीं अचरा पकरि कें, जोरत गँठिया हमारी,
सखी सब गावत गारी।।
विधि गति बाम कछु कहत परै ना, बैरिन भई महतारी।
रोय रोय अँसुआ पोंछति है, घर सों देत निकारी,
भईं सबकों हम भारी।।
गोनों कराय पिया लै चाले, इत उत बाट निहारी।
छूटत गाँव नगर सों नातौ, छूटत महल अटारी,
करम-गति टरति न टारी।।
नदिया किनारे बलम मोरे रसिया, दीन्ह घूँघट पट टारी।
थर थराय तन काँपन लाग्यौ, काहू न दीख हमारी,
पिया लै आये गोहारी।।
कहत ‘कबीर’ सुनौ भाई साधो, यह मत लेहु विचारी।
अबकी गउना बहुरि नहिं अउना, करिलै भेंट अकुँवारी,
एक बेरि मिलि लै प्यारी।।