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चेतुरी मैं महा मद माती।।
जौ लगि मातु पिता घर प्यारी, खेलि कूदि इठलाती।
गवन की चेत करो ना तिनकी, सुनत हि नाम पराती,
मुखें कहु बोलि न आती।।
निज प्रीतम सों प्रीति नहीं है, औरन संग लुभाती।
नाम अमी रस त्यागि दियौ है, विषय हलाहल खाती,
कभी न हिये पछिताती।।
ख्ेलत रही हों सखियन के साथें, आय गई पिय पाती।
देखत ताहि नयन भरि आये, बहिर गई है छाती,
कही कछु जात न बाती।।
कहत ‘सिरी’ पुर देखन धायौ, प्यारी गवने जाती।
जो सखियाँ निज प्रीतम चीन्हत, सोई सदा सुख पाती,
हिये में पिया के समाती।।