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कालि होरी गये हारि श्याम, आजु तुम फिरि आये।।
सुफलक-सुत-स्वामी-भगिनी-पति, मीत की नारि पठाये।।
मेघ-शब्द-जननी-पति-रिपुकुल, देव नाम संग लाये।।
नर-केहरि-रिपु की भगिनी कौ, नाम लेत न लजाये।।
सरि-सुत-मित्र-शत्रु, भ्राता, अरि, सौ मुख पान चबाये।।
‘नारायण’ सुरभि कुल अस्थल, क्यों अब चाहत हँसाये।।