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श्री वृषभानु नवल नागरि सों, खेलत रंग रह्यौ री।।
अलि-सुत युग वरनौ बंकट छबि, जल सुत अधर धरौ री।।
मंजुल कटि युगांचल राजै, मानों शशि राह ग्रसौ री।।
हँसि मुसकाय सुघर सांरग सौ, रमणी कौ रूप धरौ री।।
श्यामा-श्याम सकल गुण आगर, सुख सागर सिरजौ री।।
‘सूर’ श्याम चरननि पर बलि बलि, यह सुख नहिं बिसरौ री।।