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साँवरे के चरित्र सुनौ री।।
एक समय ब्रज की सब बनिता, हरषि चलीं जल कों री।
मज्जन हेतु धँसी जमुना में, कोऊ श्यामल कोऊ गोरी
करत जल में किलकोरी।।
ताही समय ब्रजराज साँवरौ, जमुना तट पहुँचौ री।
चीर उठाय कदम चढ़ि बैठो, चढ़ि गयो नवल किशोरी,
मुदित मन आनँद सों री।।
लै डुबकी उघरी बहुरी जब, एक सखी उनमें री।
जमुना तट जब पट नहीं पायो, कहत सखिन सों यों री।
बसन सब कौन हरौ री।।
उनमें से एक चतुर नायिका, प्रेम अधिक रस बोरी।
इत उत देख चहुँ दिसि देखी, कहत कदम पर को री,
बसन सब याही हरौ री।।
बोले श्याम मधुर रस बतियाँ, तुम सब लाज तजौ री।
लाज छाड़ि उठि सन्मुख धावो, तब देहौं पट तोरी,
टेक सब जानत मोरी।।