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लागी री साँवरे की मोरी।।
घाट बाट घर बाहर मोहन, करत फिरत होरी होरी।
कै ब्रजराज कुमार रहैगौ, कै वृषभानु किशोरी,
रारि अब बहुत बढयौ री।।
मैं जमुना जल भरन जाति ही, पहिरें सुघर पटौ री।
अबीर गुलाल की धूँधरि में सखि, मोहन मोहि गह्यौ री,
मैं हूँ मुरली गहि तोरी।।
एक दिवस मेरी आय अचानक, नाजुक बहियाँ मरोरी।
मैं लपटाय छुड़ाय भजी, अँगिया लै केसरि बोरी,
मैं हूँ मुख मारी रोरी।।
‘सूर श्याम’ की प्रीति अलौकिक, बरनि सकै कवि को री।
शेष महेश गणेश हू हारे, सारद की मति भोरी,
सदा जुग जुग जीवै जोरी।।