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प्यारी होरी है कैं जोरी।।
जो तुम निधरक झुके ही परत हौ, मानत नाहीं निहोरी।।
कहा कहैंगी देखनवारीं, जो मेरी दुलरी तोरी।।
‘हरीचन्द’ मुख चूमि भजन की, बदी कौन नें होरी।।