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राधे नंदनंदन समुझाय रहीं, होरी खेलौ फागुन रितु आय गई।।
बरसाने की सुघर ग्वालिनी, पिय सँग झगरि रही।
अबकी फागुन होरी तेरे सँग खेलो, जान दै कान्हा भई सो भई।।