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होरी शंकर खेलें भवन में, बारे मितवा तू कर लै बहार।
बे गए बालम बे गए, और पहुँचे है नदिया के पार।।
आपुन पार उतरि गये, और हमको छोड़ो मँझधार।
गोरी तौ पौढ़ी पलंग पै, और मुख पै डारें रुमाल।।
जाउ बलम घर अपने, यहाँ नहीं है मिलिबे कौ दाँव।