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सखी कहौ कैसे धीरज आवै, मोहि कोकिल बोल न भावैं।
फागुन मास कौ ऐसौ महात्तम, पशु पंछी घर आवैं।।
ते बड़भागी हम ही अभागीं, रोवत नयन सुजावें।।
प्राण प्रिया परदेश बसत हैं, खबरि न कैसें हुँ पावें।।
कै पंछी बनि तहँ उड़िजावैं, कै धरती धँसि जावें।।