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चहु दिसि मैं फिरि आई, लाल नहिं देत दिखाई।
मधुबन गोकुल और बृन्दाबन, नहिं पाये जदुराई।।
नाच तमासे सब तजि दीन्हें, उनही सों डोर लगाई।
अब तुम आऔ दरस दिखाऔ, उर अन्तर धुँधुआई।।
तेरी छवि पर हम लोई हैं, हर तन नैन समाई।
इतने हू पर पीर न आवै, यही तुम करत भलाई।।
कहा दोष हमरे सर थोपौ, हम हैं जाति लुगाई।
हम तेरे चरनन की दासी, मत लावौ निठुराई।।