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नित उठि मान मनावै प्यारी, नित उठि मान मनावै।
कौन सी टेव परी ब्रज सुंदरि, पिय कों पाँय परावै।।
नहिं बूझति समुझति न सुनति रिस, तनिक बात बढ़ि जावै।
जो तू कहै मैं परम सयानी, स्यानी कौन कहावै।।
यह दिन फाग सुहाग सखी री, सब काहू मन भावै।
‘श्री विट्ठल’ गिरिधरन लाल कों, काहे न रंग चढ़ावै।।