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आजु नगर में धूम मची है, हो होरी खेलत कुँवर कन्हाय।।
मची है कींच मग बीच वृन्दावन, परम पीतपट रहे हैं चुचाय।
बैंनी झुकी, अलक की झलकनि, मानों मेघ रहे झर लाय।।
चातक मोर कोकिला बोले, दादुर बोले हैं मदन जगाय।
);तु बसन्त फूले बन उपवन, द्रुम द्रुम लता रही लहराय।।
बाजत ताल मृदंग झाँझ ढफ, भेरि रबाब बीन सहनाय।
चंग उपंग खंजरी महुअरि, नूपुर धुनि सुनि नगर सिहाय।।
इन्द्र कुबेर वरूण सनकादिक, रवि-रथ ससि रथ चल न सकाय।
जोगी जती तपी मुनि ग्यानी, उनहूँ के जोग रहे विसराय।।
जल थल थकित सभी मग डोलैं, पंथिन के रहे पंथ भुलाय।
गोपी ग्वाल बाल सब खेलें, शिव विरिंंच गति रही है लुभाय।।
सारद सेस महेश बखानत, उनहूँ पै हरि गति जानि न जाय।
चिरजीवौ ब्रजराज साँवरे,‘सूर’ विमल इतनौ जस गाय।।