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कर लियें अबीर गुलाल, साँवरौ खेलत होरी।।
स्याम गहृौ ललिता कौ नीलाम्बर, उनहूँ पीताम्बर गहृौ है बहोरी।
छूटी अलक मुकुट लपिटानी, मनहुँ व्यालिनी ने चंद्र ग्रस्यौ री।।
केसरि कुमकुम कुसुम रंग लै, मिलि सब वसन सुरंग रंग्यौ री।
पकरि नचावन चहति गुपालहिं, देउ बैनु वृषभानु किसोरी।।
बाजत ताल मृदंग झाँझ ढफ, और सखी धुनि ढोल टंकोरी।
गावत चलीं हैं विभास ललित सुर, शिव विरंचि सनकादि छक्यौ री।।
मदन मयंक दिवाकर लज्जित, और कवी को बरनि सकौ री।
गावत सुनत चारि फल पावत, लखि हरि-पद द्विज ‘सूर’ तरयौ री।।