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आजु सखी ब्रज ओरी, साँवरौ खेलत होरी।।
मोर मुकुट मकराकृत कुडंल, भाल विराजत रोरी।
मुरली लकुट युगल कर राजत, कटि पट-पीत पिछौरी,
करत चितवन में चोरी।।
इततें आईं सुघर नन्दिनी, सँग लियें सखियाँ करोरी।
होड़ समेत परस्पर डारत, रँग अबीर की झोरी,
करैं मुख चंद-चकोरी।।
रस बस युगल रूप इमि जिमि नभ, घन-दामिनि इकठौरी।
सिंह जुझारि बसी यह सुन्दर, मन-मन्दिर में जोड़ी,
भाग तिनकौ है बड़ौ री।।