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मची कैलाश सुहाई।।
ततधुनि-ततधुनि बाजत ताल, जामें डौरु नाद झरि लाई।
देववधू जामें नृत्य करत हैं, गन्धर्व लीला गाई।।
मोहनी माल विशाल बनी जामें, सर्प रहे लपिटाई।
अंग भभूत गलै मृग छाला, जटन श्री गंग सुहाई।।