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बाबरी बनि आईं, तुम्हें होरी कौनें खिलाई।।
नैनन में चक डोरि बसें, तेरे घूँघट में चतुराई।
पूछँति सास कहौ मेरी बहुअरि, अँगिया कहाँ मसकाई,
तुम्हें होरी कौनें खिलाई।।
गैया दुहाबन हम गईं सासु मेरी, बछरा लात चलाई।
टूटो हार मसकि गई अँगिया, मुरकी है नरम कलाई,
हमें होरी काऊ ना खिलाई।।
बछरा दोष न देउ मेरी बहुअरि, छिपहि न बात छिपाई।
तुम तौ गई बहुअरि नन्द पौरकों, मिल गये कुँवर कन्हाई,
तुम्हें होरी कान्ह खिलाई।।