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पिचकारी सखी राधामोहन की, छीनि लो, छीनि लो, ए छिना लो।।
अपनी गैल मोहि नित उठि रोकै, जाहि नंद सौगन्ध खबा लो।।
बहुत दिनन में भेंट भई है, जाके नैनों में कजरा लगा लो।।
करि लेहु री अपनौ मन मानौं, जाके गालों पै गुलचा लगा लो।।
वृन्दावन की कुंज गलिन में, बहियाँ पकरि कैं नचा लो।।
‘सूरश्याम’ रस भीने बिहारी कौं, हियरा माँहि बसा लो।।