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होरी हो ब्रज राज दुलारे।।
बहुत दिननि तें तुम मनमोहन, फाग ही फाग पुकारे।
आज देखियो सैर फाग की, पिचकारिन के फुहारे,
चलें जहाँ कुमकुम न्यारे।।
अब क्यों जाय छिपे जननी ढिंग, ओ द्वै बापनि वारे।
कै तौ निकसि कें होरी खैलौ, कै मुख सों कहौ हारे,
जोरि कर आगें हमारे।।
निपट अनीति उठाई है मोहन, रोकत गैल गलारे।
‘नारायण’ तब जानि परैगी, आवौगे द्वारें हमारे,
दरस हमकों दिखला रे।।