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होरी हो ब्रजराज दुलारे।।
बनि बनि आईं सबै मन भाईं बरसाने कीं, अहो प्राण प्यारे।।
बाजुहि निकसि विहँसि मुख पंकज, छिपन दुरन हिय हरन हमारे।
कै कर लेहु कनक पिचकारी, कै मुख सों कहौ हा हम हारे।।
उमड़ी प्रेम नदी चहुँ दिसि तें, तोरि तोरि व्रत नेम करारे।
करुणासिन्धु मिलन के कारण, लोक लाज कुल कानि बिसारे।।
झपटि लपटि गई श्याम सुँदर सों, चपल छटा छबि ऊपर वारे।
जुगल भटू भईं लटू लाल पै, पिय प्यारी के चरण पखारे।।