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मति जाउरी आजु कोऊ पनियाँ भरन, मग रोकत ढ़ोटा श्याम बरन।।
डारत रंग भिजोवत अंबर, मटुकी फोरत बीच धरन।
मलत गुलाल हार गल टोरत, डर लागत मोहिं कंत डरन।।
ग्वाल बाल सँग भीर सखीरी, आगें परत नहिं मेरौ चरन।
फागुन भरि मति जाउ कहूं कोउ, बैठि रहौ सब अपने घरन।।
झगरत लरत डरत ना नैकहु, कासों कहों को सुनै श्रवनन्।
‘हरिबिलास’ हरि ढीठ लँगरवा, सबसों लगै लँगराई करन।।