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चहुँ ओर नदिया रंग सों भरी, निकसन कों डगर ना रही।।
इत मथुरा उत गोकुल नगरी, बीच में जमुना बही।
हमरे संग की पार उतरि गयीं, हम हीं अकेली रहीं।।
आपुन तो सैयाँ पार उतरि गए, हम सों कछु न कही।।
जानकीदास रूप रस माते, मन आवै सो सही।।